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अकबर की सुबह के साथ, व्यापक पैमाने पर इमारतों का निर्माण शुरू हुआ। कई किले उसके द्वारा डिजाइन किए गए थे और सबसे प्रमुख आगरा का किला था। इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया था। उनके अन्य गढ़ लाहौर और इलाहाबाद में हैं।

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फारसी सम्राट, नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया

गंगा-जमुना दोआब और उसके आसपास तुर्की शासन के अधीन था

इस अवधि में बक्ट्रियन, पार्थियन, शक और कुषाण के आक्रमण हुए। व्यापार के लिए मध्य एशिया खुला, सोने के सिक्कों का चलन और साका युग का प्रारंभ हुआ।

आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे 'यूलिथ- सभ्यता' कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर 'चिलियन' सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व get more info का बीजारोपण नहीं हुआ था।

हर्यंका कुल सिसुंगा वंश का बिंबिसार – कालसोक – मगध साम्राज्य (काकावर्णिन)

अभी तक विभिन्न कालों और राजाओं के हजारों अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं जिनमें भारत का प्राचीनतम् प्राप्त अभिलेख प्राग्मौर्ययुगीन पिपरहवा कलश लेख (सिद्धार्थनगर) एवं बंगाल से प्राप्त महास्थान अभिलेख महत्त्वपूर्ण हैं। अपने यथार्थ रूप में अभिलेख सर्वप्रथम अशोक के शासनकाल के ही मिलते हैं। मौर्य सम्राट अशोक के इतिहास की संपूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। माना जाता है कि अशोक को अभिलेखों की प्रेरणा ईरान के शासक डेरियस से मिली थी।

चौथी सदी से तिसरी सदी ई॰ पू॰ की समय में भारत की अधिकतर इलाका पर मौर्य साम्राज्य क अधिकार रहल। मौर्य साम्राज्य की पतन की बाद कई गो छोट-छोट राजा अलग अलग हिस्सा पर राज्य कइलें आ फिर भारत की बड़हन हिस्सा पर गुप्त साम्राज्य अस्थापित भइला ले इहे स्थिति रहे। गुप्त काल के भारत क स्वर्ण युग भा क्लासिकल जुग कहल जाला। एही समय में इहाँ हिंदू धर्म के वर्तमान रूप के प्रतिष्ठा भइल। सातवीं से इगारहवीं सदी ईस्वी में पाल, राष्ट्रकूट आ गुर्जर प्रतिहार शासकन की बीच में शक्ति-संघर्ष भइल।

भारतीय इतिहास के साधन के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्व है। सबसे प्राचीन बौद्ध साहित्य त्रिपिटक हैं। ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ ‘टोकरी’ है। त्रिपिटक तीन हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक। इन तीनों पिटकों का संकलन महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपरांत आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में किया गया। सुत्तपिटक में बद्धदेव के धार्मिक विचारों और वचनों का संग्रह है। विनयपिटक में बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए आचरणीय नियमों का उल्लेख है और अभिधम्मपिटक में बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांत हैं। त्रिपिटक से ईसा से पूर्व की शताब्दियों में भारत के सामाजिक व धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। दीर्घनिकाय में बुद्ध के जीवन से संबद्ध एवं उनके संपर्क में आये व्यक्तियों के विवरण हैं। संयुक्तनिकाय में छठी शताब्दी पूर्व के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है। अंगुत्तरनिकाय में सोलह महानपदों की सूची मिलती है। खुद्दकनिकाय लघुग्रंथों का संग्रह है जो छठी शताब्दी ई.

इसने अंग्रेजों को पुणे भेजने के लिए नेतृत्व किया। पुणे के पास वडगाँव में एक लड़ाई हुई जिसमें महादजी शिंदे के अधीन मराठों ने अंग्रेजी पर एक निर्णायक जीत का दावा किया।

छत्रपति शिवाजी – संघर्ष एवं उपलब्धियाँ

मध्यकाल का सनातन संस्कृति में बहुत अधिक महत्व नहीं है । यह काल लुटेरों का था । इस काल में सनातन में अनेक योद्धा हुए जो हार कर भी जीते। जो सनातन रूप से विजयी है उसे हराया नहीं जा सकता । वह शाश्वत विजयी है ।

जैन और बुद्ध धर्म के विकास में मगध ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और साथ ही भारत के दो महान साम्राज्य मौर्य साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन साम्राज्यों ने ही प्राचीन भारत में विज्ञान, गणित, धर्म, दर्शनशास्त्र और खगोलशास्त्र के विकास पर जोर दिया। इन साम्राज्यों का शासनकाल भारत में “स्वर्ण युग” के नाम से भी जाना जाता है।

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